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सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार

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Samrat mihir bhoj pratihar सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार परिहार पड़िहार पढ़ीहार राजपूत राजपुताना वीर योद्धा Parihar padhihar padihar Rajput rajputana veer yoddha PNG Logo hd picture By @GSmoothali गंगासिंह मूठली

अहीरों का दोगलापन

आज अहीर जाति के लोग सोशल मीडिया के माध्यम से समाज में भ्रम की स्थिति पैदा कर रहे है , ये लोग समाज में खुद को श्रेष्ठ साबित करने के लिए अपने ग्रुप्स और पेजो के माध्यम से झूठा इतिहास लोगो के सामने परोस रहे है,, ऐसी संकीर्ण सोच और शुन्य बुद्धिलब्धि(Intelligence Quotient) बाले लोगो के कुतर्क सुनकर आपको भी हंसी आने लगेगी। ये अहीर जो खुद को यादव/यदुवंशी लिखने लगे है और इस झूट को साबित करने के लिए राजपूत जाति पर प्रश्नचिन्न (?) लगा रहे है । ये हमारे समाज के लिए एक गम्भीर मुद्दा है अगर आज इस पर विचार नही किया गया तो आनेवाले समय में यदुवंशी राजपूतो का मूल इतिहास खत्म हो जायेगा।। कुतर्क 1 : आपको कहीं भी किसी भी धार्मिक पुस्तक में 'सिंह' अथवा 'राजपूत' शब्द नहीं मिलेगा। पहली बार 'राजपूत' शब्द का उल्लेख छठवी शताब्दी (6th Century A.D.) में मिलता है। लेखकों और शोधकर्ताओं के अनुसार राजपूत विदेशी आक्रमणकारी 'हुन जाति' से संबंध रखते है। यहाँ तक कि 'राजपूतों' का 'वैदिक सनातन धर्म' से भी कोई ताल्लुक नहीं है। छठवी शताब्दी में ब्राह्मणों ने बौद्ध धर्म

----राजस्थान में राजपूतो का सिरमौर जिला पाली (मारवाड़ - गोडवाड़)----

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जी हाँ हम पाली जिले को राजस्थान के राजपूतो का सिरमौर कहे तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी। हर क्षेत्र में अपने झंडे गाड़े है यहाँ के राजपूत ने राजनीती में,पढाई में ,विदेशो में ,क्राइम रिपोर्ट में,खेल में , इतिहास हो ,स्वंत्रता संग्राम हो। जिले की सिर्फ 6 % राजपूतो की जनसँख्या वाले राजपूतो ने संख्या कम होने का बहाना बनने वालो का भ्रम भी तोडा है। यहाँ मीरा बाई,सोमेश्वर ,अखेराज और राणा प्रताप आदि ने जन्म लेकर और भी पुण्य कर दिया । इसे तो ओम बन्ना की दिव्या छाया ने भी अमर कर दिया।वही चौहानो की कुलदेवी माँ आशापुरा नाडोल भी यही बिराजमान है। ---इतिहास--- =ये वही धरती है जहा राजपूतो के साथ हुए ""गिरी - सुमेल" के युद्ध में शेरशाह सूरी ने कहा था की  "मैं मुट्ठी भर बाजरे की लिए हिंदुस्तान की सल्लनत खो बैठता"। = राठौड़ो के मूल पुरुष राव सीहा जी ने मारवाड़ का राज्य पाली के बिट्टू ग्राम से प्रारम्भ किया । आज भी उनकी छतरी वह पर है = वीर पृथ्वी राज चौहान की राजधानी पहले नाडोल थी फिर अजमेर बनी यहाँ से उनके पिता सोमेश्वर ने राज यहाँ से प्रारम्भ किया = मी

रामायणकाल के तथ्य आज भी मौजूद है

रामायण और भगवान राम से हिन्दुओं की आस्था जुड़ी हुई है, लेकिन अकसर ये सवाल उठते रहे हैं कि क्या सच में भगवान राम का इस धरती पर जन्म हुआ था? क्या रावण और हनुमान थे? हम उनको तो किसी के सामने नहीं ला सकते लेकिन उनके अस्तित्व के प्रमाण को आपके सामने ला सकते हैं. भारत और श्रीलंका में कुछ ऐसी जगहें हैं जो इस बात का प्रमाण देती हैं कि रामायण में लिखी हर बात सच है. 1. Cobra Hood cave, Sri Lanka कहा जाता है कि रावण जब सीता का अपहरण कर के श्रीलंका पहुंचा तो सबसे पहले सीता जी को इसी जगह रखा था. इस गुफ़ा पर हुई नक्काशी इस बात का प्रमाण देती है. 2. Existence of Hanuman Garhi यह वही जगह है जहां हनुमान जी ने भगवान राम का इंतज़ार किया था. रामायण में इस जगह के बारे में लिखा है, अयोध्या के पास इस जगह पर आज एक हनुमान मंदिर भी है. 3. भगवान हनुमान के पद चिन्ह जब हनुमान जी ने सीता जी को खोजने के लिए समुद्र पार किया था तो उन्होंने भव्य रूप धारण किया था. इसीलिए जब वो श्रीलंका पहुंचे तो उनके पैर के निशान वहां बन गए थे, जो आज भी वहां मौजूद हैं. 4. राम सेतु रामायण और भगवान राम के होने का ये सबसे बड़ा सबूत

सामन्तों की श्रेणियां

                              मध्यकाल मे सामन्तों की श्रेणीया एव सम्मान भी निधारित कर दी गयी।यह ववस्था मुगल मनसबधारि ववस्था से प्रभावित थी पर पूर्ण रूप से उनके अनुसार नही थी।इसके विपरीत राजस्थान मे सामन्तों की श्रेणियां का निधारित कुलिया प्रतिस्ठा और पद के अनुसार होते थे।इस व्यवस्था मे कोई राज्य नही बच पाया ।प्रत्यक राज्य की श्रेणीया   अलग अलग थी।मारवाड़ मै 4 प्रकार की १.राजवी २.सरदार ३.गनायत ४.मुत्सददि राजवी राजा के तीन पीढ़ियों तक निकट सम्बन्धी होते थे।इन्हें रेख हुक्मनामा कर चाकरी से मुक्त रखा जाता था। इसी प्रकार मेवाड़ मे तीन प्रकार की श्रेणियां होती थी जिन्हें उमराव कहा जाता था। प्रथम श्रेणी के  सामन्त सोलह , दूसरी श्रेणी के बत्तीस तीसरी के सामन्त गोल के उमराव कई 100 की सख्या मे होते थे प्रथम श्रेणि के  16 उमरावों मे सलूम्बर के सामन्त का विशेष स्थान था।महाराजा की अनुपस्तिथि मे नगर का शासन -प्रसासन और सुरक्षा का उत्तरदायित्व उसी पर होता था। जयपुर राज्य मे महाराजा पृथ्वीसिंह के समय सामन्तों का श्रेणीया का विभाजन किया ।यहाँ इनके 12 पुत्रो के नाम से स्थाई जागीरी चली ।जिन्हें