अहीरों का दोगलापन
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आज अहीर जाति के लोग सोशल मीडिया के माध्यम से समाज में भ्रम की स्थिति पैदा कर रहे है , ये लोग समाज में खुद को श्रेष्ठ साबित करने के लिए अपने ग्रुप्स और पेजो के माध्यम से झूठा इतिहास लोगो के सामने परोस रहे है,, ऐसी संकीर्ण सोच और शुन्य बुद्धिलब्धि(Intelligence Quotient) बाले लोगो के कुतर्क सुनकर आपको भी हंसी आने लगेगी। ये अहीर जो खुद को यादव/यदुवंशी लिखने लगे है और इस झूट को साबित करने के लिए राजपूत जाति पर प्रश्नचिन्न (?) लगा रहे है । ये हमारे समाज के लिए एक गम्भीर मुद्दा है अगर आज इस पर विचार नही किया गया तो आनेवाले समय में यदुवंशी राजपूतो का मूल इतिहास खत्म हो जायेगा।।
कुतर्क 1 : आपको कहीं भी किसी भी धार्मिक पुस्तक में 'सिंह' अथवा 'राजपूत' शब्द नहीं मिलेगा। पहली बार 'राजपूत' शब्द का उल्लेख छठवी शताब्दी (6th Century A.D.) में मिलता है।
लेखकों और शोधकर्ताओं के अनुसार राजपूत विदेशी आक्रमणकारी 'हुन जाति' से संबंध रखते है। यहाँ तक कि 'राजपूतों' का 'वैदिक सनातन धर्म' से भी कोई ताल्लुक नहीं है। छठवी शताब्दी में ब्राह्मणों ने बौद्ध धर्म को भारत से ख़तम करने के लिए राजपूतों को सुनियोजित तरीके से 'हिन्दू' धर्म में सम्मलित किया और 'क्षत्रिय' का दर्ज़ा दिया।
जवाब: राजपूत उत्तर भारत का एक क्षत्रिय कुल है । यह नाम राजपुत्र का अपभ्रंश है। राजपुत्र शब्द का उल्लेख ऋग वेद , गीता , रामायण तथा भागवत पुराण में भी है। इसलिए इन अहिरो द्वारा राजपूत जाति पर प्रश्नचिन्न (?) उठाना इनकी अल्पबुद्धि और अज्ञानता का एक नमूना है।
कुतर्क 2 : "अहीर" यदुवंशी क्षत्रिय होते है ।
जवाब: रेवाड़ी के बलवीर सिंह जो राव तुलाराम और सर छोटूराम के रिश्तेदार थे और ब्रिटिश फ़ौज में मथुरा में तैनात थे उन्होंने १९१२ में अखिल भारतीय अहीर क्षत्री सभा का गठन कर क्षत्रिय दावेदारी ठोंकी इसका कारण अंग्रेजों द्वारा राजपूत,जाट,गूजर और अहीर को मार्शल रेस का दर्जा देना था,मार्शल रेस को फ़ौज में तरजीह मिलती थी,१९१४ में सहरसा,बिहार में अहीरों की सभा हुयी और तय हुआ की अब अहीर यादव उपनाम लिखेंगे, इसी दरम्यान शिकोहाबाद, जिला- फ़िरोज़ाबाद ( उत्तर प्रदेश ) के घोसी अहीरों ने १९१४ में अखिल भारतीय यादव महासभा बना ली और up,बिहार में एक आन्दोलन सा चला और अहीरों ने यादव लिखना शुरू किया। उससे पहले कोई भी अहीर अपने परिवार के पुरखों के नाम चेक कर सकता है यादव नाम नहीं मिलेगा ..न तो राव तुलाराम न ही सर छोटूराम यादव लिखते थे.राव एक टाइटल है जो राजाओ का होता है!ग्वाल,गोप,ग्वाला,ढिंढोर,घोसी,कमरिया अहीरों की उपजाती हैं,मुलायम कमरिया अहीर हैं!राजस्थान,महाराष्ट्र,गुजरात,मध्यप्रदेश में आज भी ज्यादातर अहीर यादव नहीं लिखतें हैं!
कुतर्क 3: आज़ादी के समय तक अहीर जाति शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ गयी। और इन्हें पिछड़े वर्ग में शामिल किया गया। आरक्षण मिलने और नहीं मिलने के आधार पर किसी का वर्ण नहीं बदला जा सकता।
जवाब: बिलकुल सही आरक्षण मिलने और नहीं मिलने के आधार पर किसी का वर्ण नहीं बदला जा सकता,, लेकिन आरक्षण केवल "अहीर " लिखने पर मिलता है "यादव " लिखने पर आरक्षण नही है। पहले UP में आरक्षण का फॉर्म भरते हुए ये जरूरी था की जाति मे यादव के स्थान पर "अहीर" लिखा जाये तभी आरक्षण का लाभ मिलता था। मुलायम सरकार ने अब वो नीति बदल दी है! और सत्ता का लाभ और दुरूपयोग करते हुए अब मोलाना मुलायम ने अब यादव लिखने पर भी अहिरो को आरक्षण देने का प्राविधान बना दिया है। .
निष्कर्ष :- अहीरों ने यादव १०० साल से लिखना शुरू किया है अहीर "यादव" नहीं होते... हाँ श्री कृष्ण के सम्बन्ध से देखें तो देवकी क्षत्राणी थीं ,वह यदुकुल के वृष्णिवंशी क्षत्रीय वासुदेव की पत्नी थीं,(अर्जुन श्री कृष्ण के सगे फुफेरे भाई थे और कुंती कृष्ण की बुआ थीं जिन्हें की हर जगह चन्द्रवंशी क्षत्री कहा गया है,महाभारत में भी और भगवत में भी.) तो नन्द व यशोदा अहीर या ग्वाल !! दूध का सम्बन्ध और पालन पोषण करने के कारण श्री कृष्ण पर अहीरों का पूरा अधिकार है लेकिन यदुकुल पर नहीं! इधर १०० साल से अहीर यादव उपनाम का प्रयोग करने लगे हैं,यही इतिहास है!जिस रेवाड़ी का किक्र मैंने ऊपर किया वो हरयाना में हैं और अहीरवाडी का अपभ्रंश ही रेवाड़ी है!
इस जानकारी को आप लोग सभी राजपूत ग्रुप्स और पेजो पर शेयर करे , ताकि जन मानस तक यदुवंशी राजपूत समाज का इतिहास पहुच सके और अहिरो के झूठे इतिहास कि पोल खुल जाये। .
जय क्षात्र धर्मं। .
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