सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार

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Samrat mihir bhoj pratihar सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार परिहार पड़िहार पढ़ीहार राजपूत राजपुताना वीर योद्धा Parihar padhihar padihar Rajput rajputana veer yoddha PNG Logo hd picture By @GSmoothali गंगासिंह मूठली

सामन्तों की श्रेणियां


                              मध्यकाल मे सामन्तों की श्रेणीया एव सम्मान भी निधारित कर दी गयी।यह ववस्था मुगल मनसबधारि ववस्था से प्रभावित थी पर पूर्ण रूप से उनके अनुसार नही थी।इसके विपरीत राजस्थान मे सामन्तों की श्रेणियां का निधारित कुलिया प्रतिस्ठा और पद के अनुसार होते थे।इस व्यवस्था मे कोई राज्य नही बच पाया ।प्रत्यक राज्य की श्रेणीया   अलग अलग थी।मारवाड़ मै 4 प्रकार की
१.राजवी
२.सरदार
३.गनायत
४.मुत्सददि

राजवी राजा के तीन पीढ़ियों तक निकट सम्बन्धी होते थे।इन्हें रेख हुक्मनामा कर चाकरी से मुक्त रखा जाता था।
इसी प्रकार मेवाड़ मे तीन प्रकार की श्रेणियां होती थी जिन्हें उमराव कहा जाता था।
प्रथम श्रेणी के  सामन्त सोलह ,
दूसरी श्रेणी के बत्तीस
तीसरी के सामन्त गोल के उमराव कई 100 की सख्या मे होते थे
प्रथम श्रेणि के  16 उमरावों मे सलूम्बर के सामन्त का विशेष स्थान था।महाराजा की अनुपस्तिथि मे नगर का शासन -प्रसासन और सुरक्षा का उत्तरदायित्व उसी पर होता था।
जयपुर राज्य मे महाराजा पृथ्वीसिंह के समय सामन्तों का श्रेणीया का विभाजन किया ।यहाँ इनके 12 पुत्रो के नाम से स्थाई जागीरी चली ।जिन्हें कोटड़ी कहा जाता था।
उसी तरह हाड़ोती मे बूंदी और कोटा राज्य मे राजवी कहलाते थे।राजवी सरदारो की सख्या तिस थी।इनमे सबसे जयदा सख्या हाडा चौहानो की होती थी कोटा के सामन्तों को आपजी सा  (पदवी)  भी बोला जाता था।
बीकानेर मे सामन्तों की तीन श्रेणियां थी।प्रथम श्रेणी मे वसानुगत सामन्त जो राव बिका के परिवार से थे।
दूसरी श्रेणी और अन्य रक्त समन्धी वंशानुगत एव तृतीय श्रेणी मे अन्य राजपूत थे।
जैसलमेर मे भाटी रावल हरराज के शासन काल मे श्रेणी ववस्था प्रारम्भ हुयी।दो श्रेणियां थी एक डावी (बाई) दूसरी जीवणी (दाई)
सामन्तों के अन्य श्रेणियां :- इनमे दो मुख्य थे।एक तो भोमिया सामन्त दूसरा ग्रासिया सामन्त
भोमिया :-ओ कहलाते थे जीनोने सिमा युद्ध  या गांव की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया हो।इन्हें जागीरी से बेधखल नही किया जा सकता था।
भोमिया सामन्त दो श्रेणियों मे विभक्त थे।एक मोटे दर्जे के भोमिया इनके ऊपर कोई दायित्व नही होता था।
दूसरा छोटे भोमिया इन्हें किसी भी प्रकार का लगान राज्य को नही देना पड़ता था।लेकिन इन्हें राज्य प्रसासन को कुछ सेवाय देनी पडति थी।आवस्यक सुचना पहुचाना ,खजाने की आज की पोस्ट मध्यकाल सामन्तों की सुरशा करना ।ऎसे बहुत से काम करते थे।
ग्रासिया अपनी सेनिक सेवा के बदले भूमि के ग्रास अर्थार्त उपज का उपयोग करते थे।यदि ग्रासिया अपनी सेवा मे किसी भी प्रकार की ढील देते तो उन्हें ग्रास सामन्त से बेदखल किया जा सकता था।

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