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सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार

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Samrat mihir bhoj pratihar सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार परिहार पड़िहार पढ़ीहार राजपूत राजपुताना वीर योद्धा Parihar padhihar padihar Rajput rajputana veer yoddha PNG Logo hd picture By @GSmoothali गंगासिंह मूठली

क्या है जोधा बाई की एतिहासिक सच्चाई ??

आदि-काल से क्षत्रियो के राजनीतिक शत्रु उनके प्रभुत्वता को चुनौती देते आये है ! किन्तु क्षत्रिय अपने क्षात्र-धर्म के पालन से उन सभी षड्यंत्रों का मुकाबला सफलता पूर्वक करते रहे है ! कभी कश्यप ऋषि और दिति के वंशजो जिन्हें कालांतर के दैत्य या राक्षस नाम दिया गया था, क्षत्रियो से सत्ता हथियाने के लिए भिन्न भिन्न प्रकार से आडम्बर और कुचक्रो को रचते रहे ! और कुरुक्षेत्र के महाभारत में जबकि अधिकांश ज्ञानवान क्षत्रियों ने एक साथ वीरगति प्राप्त कर ली, उसके बाद से ही हमारे इतिहास को केवल कलम के बल पर दूषित कर दिया गया ! इतिहास में भरसक प्रयास किया गया की उसमे हमारे शत्रुओं को महिमामंडित किया जाये और क्षत्रिय गौरव को नष्ट किया जाये ! किन्तु जिस प्रकार किसे हीरे के ऊपर लाख धूल डालो उसकी चमक फीकी नहीं पड़ती ठीक वैसे ही ,क्षत्रिय गौरव उस दूषित किये गए इतिहास से भी अपनी चमक बिखेरता रहा ! फिर धार्मिक आडम्बरो के जरिये क्षत्रियो को प्रथम स्थान से दुसरे स्थान पर धकेलने का कुचक्र प्रारम्भ हुआ ,जिसमे आंशिक सफलता भी मिली,,,,किन्तु क्षत्रियों की राज्य शक्ति को कमजोर करने के लिए उनकी साधना पद्दति को भ्रष्ट करन

मार्गदर्शकों का मार्गदर्शन स्वीकार नहीं करना : श्री देवीसिंह, महार

व्यक्ति की सम्पूर्ण शक्तियों पर उसका स्वयं का प्रभुत्व होता है । उसके विकास के सम्पूर्ण साधन व आवश्यक गुण-धर्म उसके अन्दर विद्यमान होते हैं, इसके बावजूद वह अपनी प्रत्येक विफलता के लिए दूसरों को दोषी ठहराने का अभ्यस्त हो गया है । हमारे समाज के पतन काल के बहुत पिछले भाग को छोड़ भी दें, जिसमें बुद्ध व महावीर आदि हुए, तो भी यह नहीं कहा जा सकता कि समाज के लिए मार्गदर्शकों का अभाव रहा है। पिछले एक हजार वर्षों में देश के प्रत्येक भाग में ऐसे अनेक क्षत्रिय तपस्वी हुए जिन्होंने अपनी वाणियों व विचार आन्दोलनों द्वारा समाज को भविष्य का संकेत देने व पूर्वाग्रहों से मुक्त करने कि चेष्टा की । लेकिन हमने इनकी और कभी ध्यान नहीं दिया तथा अपने पूर्वाग्रहों व दुराग्रहों से पीड़ित रहने के कारण, इनके मार्गदर्शन को स्वीकार नहीं कर सके। देश पर मुसलामानों के आक्रमण के आरम्भ काल में संत रामदेव हुए जिन्होंने समझाने की चेष्टा की कि हरिजनों को नजदीक लेने व उनको समाज का अभिन्न अंग बनाने की आवश्यकता है, लेकिन हमारे समाज ने उनका मार्गदर्शन स्वीकार नहीं किया। हरिजन आज भी गीत गाते है - ‘तंवरा की बोली प्यारी लागै सा’

राजस्थान : एक परिचय

अगर भारत का इतिहास लिखना है तो प्रारंभ निश्चित रुप से इसी प्रदेश से करना होगा। यह प्रदेश वीरों का रहा है। यहाँ की चप्पा-चप्पा धरती शूरवीरों के शौर्य एवं रोमांचकारी घटनाचक्रों से अभिमण्डित है। राजस्थान में कई गढ़ एवं गढ़ैये ऐसे मिलेंगे जो अपने खण्डहरों में मौन बने युद्धों की साक्षी के जीवन्त अध्याय हैं। यहाँ की हर भूमि युद्धवीरों की पदचापों से पकी हुई है। प्रसिद्ध अंग्रेज इतिहासविद जेम्स टॉड राजस्थान की उत्सर्गमयी वीर भूमि के अतीत से बड़े अभिभूत होते हुए कहते हैं, "राजस्थान की भूमि में ऐसा कोई फूल नहीं उगा जो राष्ट्रीय वीरता और त्याग की सुगन्ध से भरकर न झूमा हो। वायु का एक भी झोंका ऐसा नहीं उठा जिसकी झंझा के साथ युद्ध देवी के चरणों में साहसी युवकों का प्रथान न हुआ हो।'' आदर्श देशप्रेम, स्वातन्त्रय भावना, जातिगत स्वाभिमान, शरणागत वत्सलता, प्रतिज्ञा-पालन, टेक की रक्षा और और सर्व समपंण इस भूमि की अन्यतम विशेषताएँ हैं। "यह एक ऐसी धरती है जिसका नाम लेते ही इतिहास आँखों पर चढ़ आता है, भुजाएँ फड़कने लग जाती हैं और खून उबल पड़ता है। यहाँ का जर्रा-जर्रा देशप्रेम, वीरता और बलि

एक रहस्य

बात उन दिनों कि है जब भारत गुलाम था । सती प्रथा पर रोक लगी । उतरप्रदेश का एक मुसलमान लेखक लिखता है मैंने सुना कि राजपुत सती के नाम पर राजपुत नारी को जला देते हैं । मैंने इस विषय मे जानना चाहा । उन्हीं दिनों मैंने सुना कहीं कोई क्षत्राणी सती हो रही है, इस दृश्य मे अपनी आँख से देखना चाहता था । तो मैं जल्दी से अपने घोड़े से उस जगह पहुंचा तो तैयारी देखकर दंग रह गया । मैंने देखा राजपूतानी अपने शादि के जोड़े मे सभी आभूषणों से सुसज्जित चिता पे बैठकर सुर्य नारायण को हाथ जोड़ती है । सुर्य कि अग्नि से चिता जल उठी मेरे मुंह से निकला जय क्षात्र धर्म और में घोड़े से गस खाकर गीर गया । साभार - श्री देवी सिंह जी महार साहब

.......कितने बदल गये हम

कहाँ गए वो प्यारे दिन जब... * रात को सोने से पहले परिवार के सारे सदस्य घंटो बतियाया करते थे और रात का एक बज जाता था, अब सब हाथ में मोबाइल लिए हुए सो जाते हैं.. * लाइट जाती थी तब पूरा मोहल्ला पीपल के पेड़ के नीचे बैठ कर एक दुसरे की टांग खीचते थे, अब तो inverters की वजह से घर से ही नहीं निकलते..है * चूल्हे की आग पर डेगची में गुड़ वाली चाह्(चाय) की महक 10 किल्ले दूर तक जाती थी, आज चाय गैस पर बनती है महक छोडो स्वाद का भी पता नहीं लगता..है * औरतें घूँघट काढती थी और लडकिया चुन्नी से छाती ढकती थी, अब कवारियां ढाठा मार के सुल्ताना डाकू बन रही हैं और ब्याही हुई सर भी नहीं ढक रही..है * पहले मारे शर्म के घर परिवार मे पत्नी से दिन मे बात नही करते थे । अब मारे पत्नी के घर परिवार मे किसी से बात नही करते है * पहले पूरे दिन हारे पर कढोणी में दूध उबलता था और सीपी से खुरचन तार के खाते थे और उस दूध की दही इतनी स्वाद बनती थी, अब तो गए दूकान पर 15 का दही पाउच मे ले लिया..है * कोई रोता था तो सब चुप करवाते थे अब सब रुलाते है.. * कच्ची फूस की छान में पानी मार कर झोपडी में सोने में बहोत मज़ा आत