सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार

चित्र
Samrat mihir bhoj pratihar सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार परिहार पड़िहार पढ़ीहार राजपूत राजपुताना वीर योद्धा Parihar padhihar padihar Rajput rajputana veer yoddha PNG Logo hd picture By @GSmoothali गंगासिंह मूठली

राजस्थान : एक परिचय

अगर भारत का इतिहास लिखना है तो प्रारंभ निश्चित रुप से इसी प्रदेश से करना होगा। यह प्रदेश वीरों का रहा है। यहाँ की चप्पा-चप्पा धरती शूरवीरों के शौर्य एवं रोमांचकारी घटनाचक्रों से अभिमण्डित है। राजस्थान में कई गढ़ एवं गढ़ैये ऐसे मिलेंगे जो अपने खण्डहरों में मौन बने युद्धों की साक्षी के जीवन्त अध्याय हैं। यहाँ की हर भूमि युद्धवीरों की पदचापों से पकी हुई है।
प्रसिद्ध अंग्रेज इतिहासविद जेम्स टॉड राजस्थान की उत्सर्गमयी वीर भूमि के अतीत से बड़े अभिभूत होते हुए कहते हैं, "राजस्थान की भूमि में ऐसा कोई फूल नहीं उगा जो राष्ट्रीय वीरता और त्याग की सुगन्ध से भरकर न झूमा हो। वायु का एक भी झोंका ऐसा नहीं उठा जिसकी झंझा के साथ युद्ध देवी के चरणों में साहसी युवकों का प्रथान न हुआ हो।''
आदर्श देशप्रेम, स्वातन्त्रय भावना, जातिगत स्वाभिमान, शरणागत वत्सलता, प्रतिज्ञा-पालन, टेक की रक्षा और और सर्व समपंण इस भूमि की अन्यतम विशेषताएँ हैं। "यह एक ऐसी धरती है जिसका नाम लेते ही इतिहास आँखों पर चढ़ आता है, भुजाएँ फड़कने लग जाती हैं और खून उबल पड़ता है। यहाँ का जर्रा-जर्रा देशप्रेम, वीरता और बलिदान की अखूट गाथा से ओतप्रोत अपने अतीत की गौरव-घटनाओं का जीता-जागता इतिहास है। इसकी माटी की ही यह विशेषता है कि यहाँ जो भी माई का लाल जन्म लेता है, प्राणों को हथेली पर लिये मस्तक की होड़ लगा देता है। यहाँ का प्रत्येक पूत अपनी आन पर अड़िग रहता है। बान के लिये मर मिटता है और शान के लिए शहीद होता है।''
राजस्थान भारत वर्ष के पश्चिम भाग में अवस्थित है जो प्राचीन काल से विख्यात रहा है। तब इस प्रदेश में कई इकाईयाँ सम्मिलित थी जो अलग-अलग नाम से सम्बोधित की जाती थी। उदाहरण के लिए जयपुर राज्य का उत्तरी भाग मध्यदेश का हिस्सा था तो दक्षिणी भाग सपालदक्ष कहलाता था। अलवर राज्य का उत्तरी भाग कुरुदेश का हिस्सा था तो भरतपुर, धोलपुर, करौली राज्य शूरसेन देश में सम्मिलित थे। मेवाड़ जहाँ शिवि जनपद का हिस्सा था वहाँ डूंगरपुर-बांसवाड़ा वार्गट (वागड़) के नाम से जाने जाते थे। इसी प्रकार जैसलमेर राज्य के अधिकांश भाग वल्लदेश में सम्मिलित थे तो जोधपुर मरुदेश के नाम से जाना जाता था। बीकानेर राज्य तथा जोधपुर का उत्तरी भाग जांगल देश कहलाता था तो दक्षिणी बाग गुर्जरत्रा (गुजरात) के नाम से पुकारा जाता था। इसी प्रकार प्रतापगढ़, झालावाड़ तथा टोंक का अधिकांस भाग मालवादेश के अधीन था।
बाद में जब राजपूत जाति के वीरों ने इस राज्य के विविध भागों पर अपना आधिपत्य जमा लिया तो उन भागों का नामकरण अपने-अपने वंश अथवा स्थान के अनुरुप कर दिया। ये राज्य उदयपु, डूंगरपुर, बांसवाड़, प्रतापगढ़, जोधपुर, बीकानेर, किशनगढ़, सिरोही, कोटा, बूंदी, जयपुर, अलवर, भरतपुर, करौली, झालावाड़, और टोंक थे। (इम्पीरियल गजैटियर)
इन राज्यों के नामों के साथ-साथ इनके कुछ भू-भागों को स्थानीय एवं भौगोलिक विशेषताओं के परिचायक नामों से भी पुकारा जाता है। ढ़ूंढ़ नदी के निकटवर्ती भू-भाग को ढ़ूंढ़ाड़ (जयपुर) कहते हैं। मेव तथा मेद जातियों के नाम से अलवर को मेवात तथा उदयपुर को मेवाड़ कहा जाता है। मरु भाग के अन्तर्गत रेगिस्तानी भाग को मारवाड़ भी कहते हैं। डूंगरपुर तथा उदयपुर के दक्षिणी भाग में प्राचीन ५६ गांवों के समूह को ""छप्पन'' नाम से जानते हैं। माही नदी के तटीय भू-भाग को कोयल तथा अजमेर के पास वाले कुछ पठारी भाग को ऊपरमाल की संज्ञा दी गई है। (गोपीनाम शर्मा / सोशियल लाइफ इन मेडिवियल राजस्थान / पृष्ठ ३)
अंग्रेजों के शासनकाल में राजस्थान के विभिन्न इकाइयों का एकीकरण कर इसका राजपूताना नाम दिया गया, कारण कि उपर्युक्त वर्णित अधिकांश राज्यं में राजपूतों का शासन था। ऐसा भी कहा जाता है कि सबसे पहले राजपूताना नाम का प्रयोग जार्ज टामस ने किया। राजपूताना के बाद इस राज्य को राजस्थान नाम दिया गया। आज यह रंगभरा प्यारा प्रदेश इसी राजस्थान के नाम से जाना जाता है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

****रामपुरा के चंद्रावत****

भायल परमार