सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार

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Samrat mihir bhoj pratihar सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार परिहार पड़िहार पढ़ीहार राजपूत राजपुताना वीर योद्धा Parihar padhihar padihar Rajput rajputana veer yoddha PNG Logo hd picture By @GSmoothali गंगासिंह मूठली

जानिए भारत मे तुर्क-मुग़ल स्थापना की असली वजह क्या थी


#Nota का जिक्र आने पर कुछ मन्दबुद्धि भक्त और इतिहास का अधकचरा ज्ञान प्राप्त किये हुए संघी उपदेश दे रहे हैं कि मध्यकाल में भी कुछ राजपूत राजा Nota दबा देते थे और राजपूतो की आपसी फूट के कारण तुर्को-मुगलों का राज भारतवर्ष में स्थापित हो गया !!

सुनी सुनाई बातों के आधार पर या किन्ही एक-दो नालायकों की करतूतों के आधार पर पुरे समाज पर लांछन लगाना कहाँ तक उचित है???
और जब ये लांछन लगाने का कार्य खुद को कट्टर संघी/ हिंदुत्ववादी बताने वाले करते हैं तो और दुःख होता है।

मौहम्मद साहब की मृत्यु के एक दशक के भीतर ही अरब हमलावरो ने तलवार के दम पर ईरान ईराक सीरिया मिस्र और पुरे मध्य पूर्व एशिया का इस्लामीकरण कर दिया और जीतते हुए वो स्पेन तक जा पहुंचे,
मगर भारत ही ऐसा अकेला देश था जिसने उनका सफल प्रतिरोध किया,
सम्राट हर्षवर्धन बैस की मृत्यु के बाद से सन् 1192 तक भारत के वीरों ने इस्लामिक हमलावरो का लगातार 500 वर्ष से अधिक समय तक सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया।बाद में आपसी फुट के कारण भारत में इस्लामिक सत्ता स्थापित तो हुई मगर वो निरन्तर प्रतिरोध के कारण भारत का 10% भी इस्लामीकरण नही कर पाए।

इस बात को खुद मुस्लिम इतिहासकार स्वीकार करते हैं कि भारतवर्ष अकेला देश है जिसने सफलतापूर्वक अपनी संस्कृति की रक्षा की।

मौलाना "हाली" के शब्दों में इसकी पीड़ा देखिये--

"वह दीने-हिजाज़ी का बेबाक बेड़ा,
निशां जिसका अक्साए-आलम में पहुँचा.

मजाहम हुआ कोई खतरा न जिसका,
न अम्मां में ठिठका, न कुल्जम में झिझका..

किये पै सिपर जिसने सातों समंदर
वह डूबा दहाने में गंगा के आकर"....

मुस्लिम इतिहासकार अचरज करते हैं कि जो इस्लाम का बेबाक बेड़ा जिब्राल्टर को पार करता हुआ स्पेन तक जा पहुंचा और जिस मजहब ने अपने जन्म लेते ही 50 वर्ष के भीतर पूरे अरब, पश्चिम-मध्य एशिया और अफ्रीका के बड़े हिस्से का इस्लामीकरण तलवार के जोर पर कर दिया विओ भारत मे कैसे सफल नही हो पाया??

जौहर, शाका जैसी बलिदानी क्षत्रिय परम्पराओं ने इस देश में सनातनी संस्कृति को जीवित रखा।
बाद में 16 वी सदी के बाद जब निरन्तर संघर्ष और कुछ घरानो के समझौतों के कारण राजपूत कमजोर पड़ने लगे तो उसकी भरपाई सिक्खों, मराठो और जाट वीरो ने पूरी की,
किन्तु उस समय भी वीर दुर्गादास राठौर, छत्रसाल बुंदेला ,राणा राजसिंह जैसे महान नायकों ने हिंदुत्व की लौ को जलाए रखा।

आलोचना करना बहुत आसान है पर अहसानफ़रामोश आलोचक यह नही बता पाते कि जब अरबों तुर्कों अफगानों के हमलो में क्षत्रिय अपना सर कटवा रहे थे और क्षत्राणियां जौहर की अग्नि में जलकर अपने प्राण दे रही थी तो उस समय तुम्हारे खुद के पुरखे किस बिल में छुपे बैठे थे????

हर समाज में कुछ गद्दार कुछ नकारात्मक किरदार होते हैं उनके नाम पर पुरे समाज पर ऊँगली उठाना कहाँ तक उचित है?????????

यह पोस्ट योगेंद्रसिंह जी पुंडीर के फेसबुक दीवार से ली गई है।

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