----------------------------- #जौहर ---------------------------
-------- #आत्मबलिदान_के_शौर्य_की_महागाथा ---------
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विधर्मियों के निशाने पर सदैव सनातन संस्कृति रही है , पहले आक्रांताओ ने इसे प्रत्यक्ष रूप से आक्रमण करके लूटा घसोटा , उसका सामना करके हमने अपनी संस्कृति को बौद्धिक स्तर पर बचा लिया ,लेकिन फिर उनके आक्रमण का तरीका बदल गया उन्होंने हमारी संस्कृति पर बौद्धिक आक्रमण किया ,और हमारी प्रतिरोधक क्षमता को कुंद करते चले गए , हमारे रीति रिवाजों को मान, सम्मान ,गौरव और शौर्य को कुरीति बोल कर कभी मजाक उड़ाया तो कभी हमारी परंपराओं को पिछड़ा बोलकर हमे लज्जित करने की कोशिश की सबसे बुरा पक्ष ये रहा कि हमारी आज की पीढ़ी ने उनकी कही बात को आंख बन्दकर मान लिया और खोज करना बंद कर दिया कि वास्तविकता क्या है ??
इसी बौद्धिक आतंकवाद में एक शौर्य गाथा को कुरीति कहकर उसके वास्तविक रूप को ही गायब कर दिया गया
- ये था जौहर और साका आज मैं उसी गौरवशाली जौहरगाथा को लेकर आया हूँ -
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#सनातन_संस्कृति_में_सभ्य_नियम_थे, फिर चाहे वह शत्रुता के लिये हो या मित्रता के लिये। युद्ध तब भी होते थे किंतु नारियों की अस्मिता पर कोई आंच नहीं आती थी। किले तोड़े जाते थे, राजकोष लुटे जाते थे किंतु माँ-बहनें सबकी माँ-बहनें थीं। उनकी और बुरी दृष्टि से देखना एक जघन्य पाप ही माना गया। क्युकी वो वैदिक धर्म के प्रहरी योद्दा थे न कि कामपिपासा लिप्त एक व्यभिचारी , वो वैदिक साहित्य में उल्लेखित महिलाओं के लिए इन आदर्शो का पालन करते थे जहां -
महिला शब्द - मह + इल च् + आ = महिला। मह का अर्थ श्रेष्ठ या पूजा हैं पूज्य, श्रेष्ठ जो है वही महिला। लौकिक संस्कृति में आदर देने के लिए स्त्रियो के लिए मान्य शब्द का प्रयोग किया जाता है। यह वस्तुतः वैदिक संस्कृति के मेना शब्द से बना है। ऋग्वेद में मेना शब्द नारी अर्थ का वाचक है और यास्क कृत निरुक्त (3/21/2) में इसकी व्युत्पत्ति दी गई है -
मानयन्ति एनाः (पुरुषाः)
अर्थात् - पुरुष इनका आदर करते हैं इसलिए इन्हें मेना कहते हैं।
स्त्री शब्द तो सर्वाधिक प्रचलित है। भाष्यकार महर्षि पतंजलि के अनुसार “स्त्यास्यति अस्याँ गर्भ इति स्त्री”। उसके भीतर गर्भ की स्थिति होने से उसे स्त्री कहा गया है।
जहां तक नारी शब्द का प्रश्न है, वह नर की ही तरह नृ धातु से बना है और इसका सामान्य अर्थ है क्रियाशील रहने के कारण ही नारी हुई। जो गति करे, हलचल करे वह नर एवं नारी। किन्तु ऋग्वेद में नृ का प्रयोग नेतृत्व करने, दान देने और वीरता करने के अर्थ में किया गया है। उस दृष्टि से नर और नारी में यही तीनों विशेषताएं होनी चाहिए।
यदि प्राचीन ग्रन्थों में नारी के प्रति व्यक्त उद्गार देखें, तो स्पष्ट हो जाता है कि नारी के व्यक्तित्व के प्रति सम्मान का भाव उनमें है और उस सदैव एक स्वतंत्र चेतन सत्ता के रूप में ही स्मरण किया गया है। वेदों में तो नारी के गौरव का अनेक प्रकार से वर्णन है। एक स्थान पर नारी को ब्राह्मण कहा गया है। “स्त्री हि ब्रह्मा बभूविथ” (ऋग्वेद 8।33।19) इसका अभिप्राय यह है कि वह स्वयं विदुषी होते हुए अपनी सन्ता को सुशिक्षित बनाती है। ब्रह्म ज्ञान का अधिष्ठाता है। यही यज्ञों का संचालन करता है। वह ज्ञान-विज्ञान में श्रेष्ठ होता है। अतः उसे यज्ञ में सर्वोच्च स्थान दिया जाता है। उसी प्रकार नारी को ज्ञान-विज्ञान में निपुण होने के कारण ब्रह्म बताया गया है।
ये तो हुई वैदिक साहित्य में महिला जो सिर्फ आदर और सम्मान की प्रतीक थी न कि भोग की, लेकिन जब पहली बार यवनों व तुर्कों ने आक्रमण किया तो भारतीय समझ नहीं पाए की एक युद्ध हार जाने का अर्थ न केवल राज्य गंवा देना होगा अपितु अपनी स्त्रियों की, छोटी-छोटी कन्यायों की इज्जत गंवा देना भी होगा। एक बार का अनुभव पर्याप्त रहा, जब देखा कि एक बार नहीं सहस्रों बार बलात्कार किया जाता था। एक ही नारी को पूरी पूरी सेना के सहस्रों सिपाही बारी बारी से या फिर मिल कर लूटते थे। वो जितना रोती चिल्लाती उनका आनन्द उतना बढ़ जाता ,यह सब जान कर हिन्दुओं ने अपने किलों के अंदर जौहर कुण्ड बनवाये, जिसमें एक साथ कई सहस्र नारियों के अग्नि-प्रवेश का प्रबंध रहता था। यह कोई अत्याचार नहीं थे उन पर, यह उनको अत्याचार से बचाने का मार्ग था। वर्षों तक नरपिशाचों के हाथों नोचे जाने, खरोंचे जाने से बचने का एक विकल्प था – एक क्षण में मृत्यु। गौरवपूर्ण मृत्यु। अपनी सखियों के हाथ में हाथ थामे एक सामूहिक मृत्यु। माँ भवानी का नाम गुंजाते हुए ईश्वर की गोद में एक स्वैच्छिक समर्पण। अपनी मर्यादा की रक्षा के लिए एक महायज्ञ। रग रग में दौड़ते शौर्य की परीक्षा। स्त्री की ज्वलंत आत्मशक्ति का उत्सव।।
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#भारतीय_इतिहास_में_उल्लेखित_प्रमुख_साका_और_जौहर -
1. #रणथंभौर_का_साका -
यह सन् 1301 में अलाउद्दीन खिलजी के ऐतिहासिक आक्रमण के समय हुआ था। इसमें हम्मीर देव चौहान विश्वासघात के परिणामस्वरूप वीरगति को प्राप्त हुआ तथा उसकी पत्नी रंगादेवी ने जौहर किया था। इसे राजस्थान के गौरवशाली इतिहास का प्रथम साका माना जाता है।
2. #चित्तौड़गढ़_में_सर्वाधिक_तीन_साके_और_जौहर_हुए_हैं -
#प्रथम_साका - जौहर - यह सन् 1303 में राणा रतन सिंह के शासनकाल में अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ पर आक्रमण के समय हुआ था। इसमें रानी पद्मनी सहित स्त्रियों ने जौहर किया था। चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी के नेतृत्व में 16000 हजार रमणियों ने अगस्त 1303 में किया था।
#दूसरा_साका - जौहर - यह 1534 ईस्वी में राणा विक्रमादित्य के शासनकाल में गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह के आक्रमण के समय हुआ था। इसमें रानी (हाडी) कर्मवती के नेतृत्व में स्त्रियों ने जौहर किया था। राजमाता हाड़ी (कर्णावती) और दुर्ग की सैकड़ों वीरांगनाओं ने जौहर का अनुष्ठान कर अपने प्राणों की आहुति दी।
#तृतीय_साका - जौहर - यह 1567 में राणा उदयसिंह के शासनकाल में अकबर के आक्रमण के समय हुआ था जिसमें जयमल और पत्ता के नेतृत्व में चित्तौड़ की सेना ने मुगल सेना का जमकर मुकाबला किया और स्त्रियों ने जौहर किया था। यह साका जयमल राठौड़ और फत्ता सिसोदिया के पराक्रम और बलिदान के प्रसिद्ध है। मध्यकाल के प्रसिद्ध लेखक अबुल फजल की किताब आइने अकबरी में 1567 की तीसरे साके का जिक्र भी मिलता है।
3. #जालौर_का_साका -
कान्हड़देव के शासनकाल में 1311 – 12 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय हुआ था।
4. #गागरोण_के_किले_के_साके -
#प्रथम - 1423 ईस्वी में अचलदास खींची के शासन काल में माण्डू के सुल्तान होशंगशाह के आक्रमण केसमय हुआ था।
#द्वितीय - यह सन् 1444 में माण्डू के सुल्तान महमूद खिलजी के आक्रमणके समय हुआ था।
5. #जैसलमेर_के_ढाई_साके -
जैसलमेर में कुल ढाई साके होना माना जाता है। इसके तीसरे साके में वीरों ने केसरिया तो किया था किन्तु जौहर नहीं हुआ इस कारण इसको अर्ध साका कहा जाता है।
#प्रथमम - यह अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय हुआ था।
#द्वितीयम - यह फिरोजशाह तुगलक के आक्रमण के समय हुआ।
#तृतीयम (अर्ध साका)- यह लूणकरण के शासन काल में कंधार के शासक अमीर अली के आक्रमण के समय हुआ था।
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#कायरता_या_शौर्य -
एक ब्लॉगर है #Jay_Prakash_Jalauni इनके मुताबिक --
जो स्त्रियाँ इतनी वीर थीं कि अपने को धधकते-अग्निकुंड में समर्पित कर सकने में कहीं से पीछे नहीं हटती थीं....क्या वो मैदाने-जंग में तलवार लेकर अपने पति,पुत्र आदि के साथ मिलकर शत्रु से नहीं लड़ सकती थीं , ये तो बस अपनी कायरता छुपाने के लिए की जाने वाली बस एक आत्महत्या थी इसमे गर्व कैसा ये तो कायरता थी !!!
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ऐसे कथन मुझे उस समय बहोत सुनने को मिले थे जिस समय ये जौहर ट्रेंड कर रहा था , मेरी एक बुरी आदत है मैं किसी भी विषय को तब तक नही छोड़ता जब तक उसकी पूरी जानकारी नही कर लेता , और इस कुतर्क के लिए मैंने एक स्टडी जौहर के संदर्भ में की तो समझ मे आया कि वाकई ये जौहर आत्मसम्मान की और शौर्य की लड़ाई थी जिसे लड़ने के लिए हर क्षत्राणी तैयार रहती थी । मार्गेट पी बेटिन ने अपनी किताब एथिक्स ऑफ सुसाइड में इसका उल्लेख किया है कि जौहर प्रथा राजपूतों में सामान्य प्रथाओं की तरह थी, जो अपने आत्मसम्मान के लिए अपनी जिंदगी का मूल्य चुकाने से भी नहीं डरते थे।
#जौहर_के_कुछ_गैर_भारतीय_उदाहरण -
● क्लेओपेट्रा एक महान रानी और कुशल प्रशासक जो इजिप्ट की रानी थी और अलेक्जेंडर की प्रेमिका भी जब ऑक्टेविया की सेना ने इजिप्ट पर आक्रमण किया और उसके हारने की नौबत आई तो उसने गर्व से अपनी हजारो दासियों के साथ आत्मबलिदान कर दिया ऐसा कहा जाता है कि उस जैसी खूबसूरत महिला आजतक नही हुई ।।
● नेफेरटीटी जिसका अर्थ होता है एक खूबसूरत महिला ये भी इजिप्ट की रानी थी जो फ़राओ अकएन्टेन की बीबी और इजिप्ट की रानी थी लेकिन जब फराओ की हार हुई और दुश्मन इन्हें पकड़ते इन्होंने खुद को सैकड़ो दासियों के साथ मार लिया ।।
● बॉड़ीक जिसे बोडिशिया (Boudicca) के नाम से भी जाना जाता है ये प्राचीन ब्रिटेन के किंग प्रसुटगुस (Prasutagus) जो एक केल्टिक राजा थे , राजा प्रसुटगुस की मृत्यु के बाद रानी बोडिशिया ने वहाँ का राज संभाला और रोमन के खिलाफ एक युद्ध किया लेकिन हार जाने पर खुद को पकड़े जाने से बचाने के लिए खुद को मार लिया साथ मे सैकड़ो सेविकाओं को भी ।
● लूलिया औरेलिया जेनोबिया, पलमायरा (आधुनिक सीरिया) की रानी थी जिसने रोम तक अपनी सेना का नेतृत्व किया और बहोत से युद्ध लड़े लेकिन एक युद्ध मे जब उसे लगा कि वो हारने वाली है और पकड़ी जाएगी तो इस महान योद्धा रानी ने खुद को मार डाला इनके साथ हजारो महिला योद्धाओं ने भी आत्मबलिदान कर लिया।
● जापान के समुराई राजा ओनोडेर जुनाई की पत्नी वहाँ की रानी ओह्यकु ने राजा के हार जाने पर खुद को बलिदान कर दिया उनके साथ सम्पूर्ण समुराई महिलाओं ने जिनकी संख्या हजारो में थी उन्होंने भी ।इसे जौहर की ही तरह सिपुकु या हाराकीरी कहते है ये भी जौहर ही है बस नाम बदला है ।
अब सवाल ये है कि जिन रानियों ने खुद को शत्रु के हाथ से बचाने के लिए खुद को बलिदान कर दिया जिसे पश्चिम के इतिहासकार बड़े गर्व के साथ महान और शौर्य का प्रतीक कहते है फिर भारतीय सेक्युलर और यहाँ के 2 पैसे के इतिहासकार इसे कायरतापूर्ण कैसे कह सकते है मतलब शौर्य को कायरता कहने का प्रचलन सिर्फ भारत मे है , जौहर का मान वही समझ सकता है जिसकी शिराओं में शुद्ध रक्त हो वो नही जो फ्री सेक्स की जन्मी औलाद हो ।।
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#जौहर_सिर्फ_भारत_मे_ही_नही -
#जापान_की_जौहर_प्रथा_हाराकीरी -
जापान में ये प्रथा थी , की ज सामुराई राजा हार जाते थे तो अपमान और पकड़े जाने से बचने के लिए राजाओ की पत्नियां सामूहिक बलिदान देती थी जिसे सेप्पुकु या हाराकीरी कहते है । इसमे समुराई परिवारों की महिलाये एक झटके के साथ गर्दन की धमनियों को काटकर सामूहिक आत्महत्या कर लेती थी , इसमे एक टैंटो या काइकन जैसे चाकू का उपयोग होता था । इनका मुख्य उद्देश्य था पकड़े जाने से बचना और एक त्वरित और निश्चित मौत हासिल करना ।।
कुछ सामूहिक हाराकीरी -
Minamoto no Tametomo (1139–1170)
Minamoto no Yorimasa (1106–1180)
Minamoto no Yoshitsune (1159–1189)
Ashikaga Mochiuji (1398–1439)
Azai Nagamasa (1545–1573)
Oda Nobunaga (1534–1582)
Takeda Katsuyori (1546–1582)
Shibata Katsuie (1522–1583)
Hōjō Ujimasa (1538–1590)
Sen no Rikyū (1522–1591)
Torii Mototada (1539–1600)
Forty-six of the Forty-seven rōnin (1703)
Watanabe Kazan (1793–1841)
Tanaka Shinbei (1832–1863)
Takechi Hanpeita (1829–1865)
Yamanami Keisuke (1833–1865)
Byakkotai (group of samurai youths) (1868)
Saigō Takamori (1828–1877)
Nogi Maresuke (1849–1912) and Nogi Shizuko (1859–1912)
Chujiro Hayashi (1879–1940)
Kunio Nakagawa (1898–1944)
Korechika Anami (1887–1945)
Takijirō Ōnishi (1891–1945)
Isamu Chō (1895–1945)
Mitsuru Ushijima (1887–1945)
Yukio Mishima (1925–1970)
Isao Inokuma (1938–2001)
#बाली_का_जौहर_प्रथा_पुपुतन_प्रथा -
बाली में पुपुतन प्रथा की शुरुआत तब हुई जब वहाँ डच पहुँचे वो लड़ाई के बाद वहाँ की महिलाओं को बंदी बना लेते थे और उनके साथ दुर्व्यवहार करते थे उनसे बचने के लिए बाली की महिलाओं ने एक तरीका निकाला उनको जब लगता था की वो पकड़ी जाने वाली है तो वो खुद को बलिदान कर देती थी , इसी प्रथा के एक आत्मबलिदान के दिवस पर सन 1906 में करीब 10000 बालियान लोगो ने खुद का आत्मबलिदान कर दिया ।।
#इजरायल_की_जौहर_प्रथा_सीकरी_मासादा -
60 ईस्वी में, एक समय जब भाले और कैटापल्ट युद्ध के हथियार थे, रोमन विजय ने यहूदिया को 960 जियोलॉट यहूदियों को पहले समर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया और फिर राजा हेरोदेस समेत सबको किले में बंद कर दिया गया । जुडेन नाम का वह किला रेगिस्तान में एक चट्टान पठार पर बनाया गया गया था , प्राचीन किले और महलों की साइट (और अभी भी बनी हुई है) थी। यह समूह आधे दशक तक वहां रहा, उस इस दौरान वो अपनी आबादी बढ़ाते रहे और खुद को तैयार करते रहे और, 72 ईस्वी की रोमन घेराबंदी हुई, तब सम्राट लूसियस फ्लेवियस सिल्वियस ने किले की दीवारों का उल्लंघन करने और विद्रोहियों को पकड़ने के लिए एक विशाल रैंप का संचालन किया। इसमे एक आत्मबलिदान देने की प्रथा बनाई गई जब सैनिक लड़ने जाते और पकड़े या मारे जाते तो उनके परिवार की महिलाएं बच्चो समेत आत्मबलिदान कर देती उनमे से एक बची हुई महिला एलाजार बेन यायर के शब्दों में -
"हमारी पत्नियों को दुर्व्यवहार करने से पहले मार डालें, और हमारे बच्चों ने दासता का स्वाद लेने से पहले, और जब हम उन्हें मार डाले, तो हम एक दूसरे पर पारस्परिक लाभ प्रदान करते हैं ... "
#इसके_अलावा -
1 - वियतनामी जौहर प्रथा - सेल्फ इमोलेशन
2 - कैलिफोर्निया के सेंडियागो की जौहर प्रथा - हैवेन्स गेट
3 - टेक्सास के वाको की जौहर प्रथा - The Branch Davidian Seventh-Day Adventists
4 - यूगांडा की जौहर प्रथा - Movement for the Restoration of the Ten Commandments of God
या फिर
5 - गुयाना की जौहर प्रथा - People’s Temple Jonestown Massacre
पूरे विश्व मे आत्मबलिदान की प्रथा रही है जहां लोगो ने अपना आत्मबलिदान देकर शौर्य के उच्चतम स्तर को छुआ है। उनके यहाँ इसे गर्व और सम्मान का विषय माना जाता है उनके यहाँ कोई इसे कायरता नही कहता क्योंकि उनके यहाँ आपके जैसे सेक्स स्लेव सड़को पर नही घूमते ।।
#विशेष - ‘दुख्तरे हिन्दोस्तान, नीलामे दो दीनार’
अर्थात इस जगह हिन्दुस्तानी औरतें दो-दो दीनार में नीलाम हुई । हर बार मुस्लिम आक्रांता भारत को लूटते रहे, ये तमाम दरिंदे अपने साथ हिन्दू महिलाओं को ले जाते रहे और उन्हें बेचते रहे उन्हें सेक्स स्लेव बनाये जाते और उस गलीच ज़िंदगी से बचने के लिए जौहर प्रथा बनी । #गौरवशाली_मृत्यु या #गलीच_जीवन के चुनाव में क्षत्राणियां शौर्य का चुनाव करती थी हालांकि तुम सेक्युलर और बुद्धिजीवी नही समझोगे क्योंकि तुम फ्री सेक्स की वकालत करने वाले गलीच इंसान हो ।।
#छायाचित्र - The wife of Onodera Junai, one of the Forty-seven Ronin, prepares for her suicide; note the legs tied together, a feature of female seppuku to ensure a decent posture in death
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