"किताबी ज्ञान"
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पंडित जी बुदबुदा रहे थे, -
'प्रीति बड़ी माता की और भाई का बल,
ज्योति बड़ी किरणों की और गंगा का जल।'
... यह सुन वहां से गुजर रही बुजुर्ग महिला हंस पड़ी।
पंडित जी को उसका हंसना अपमानजनक लगा। उन्होंने महिला के सामने एतराज जताया, तो महिला ने जबाब दिया,
'मैं आप पर नहीं, आपकी बात सुनकर हंसी थी। आप जो बुदबुदा रहे थे वह बात सत्य प्रतीत होती है, पर है नहीं।
आपके जैसा ज्ञानी ऐसी बात करे, इस पर मुझे हंसी आ गई।'
पंडित जी नें पूछा, 'तो फिर सत्य क्या है ?
महिला ने कहा,
'प्रीति बड़ी त्रिया की और बांहों का बल।
ज्योति बड़ी नयनों की और मेघों का जल।
बात अगर पिता पुत्र में फंसे तो माँ पुत्र का साथ नहीं देगी, पर पत्नी हर हाल में साथ होगी।
जब बेरी अकेले में घेर लेगा तो भाई का नहीं, अपनी बांहों का बल काम आएगा।
ज्योति नयनों की इसलिए बड़ी है कि जब आंखें
ही न हों तो सूरज की किरणों की रोशनी या अमावस का अंधेरा सब बराबर है।
गंगाजी पवित्र हैं, लेकिन वे मेघों के समान न जन जन की प्यास बुझा सकती हैं, न सिंचाई कर सकती हैं।'
पंडितजी बोले, 'अब मैं समझ गया, किताबी ज्ञान
काफी नहीं। जीवन से भी सीखना होगा।'
सीख- किताबी ज्ञान के साथ ही, व्यवहारिक जीवन की कुशलता प्राप्त करें,
विध्या (ज्ञान-विज्ञान) में पारंगत बनें, एवं शारिरिक सक्षमता, स्वास्थ्य बनाएँ रखें।
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