प्रतिहार/परिहार/पढिहार राजपूत राजवंश
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*** प्रतिहार क्षत्रिय राजवंश ***
मित्रों आज की इस पोस्ट के द्वारा हम आपको प्रतिहार क्षत्रिय वंश के राज्य व ठिकानों की जानकारी देंगे।।
प्रतिहार एक ऐसा वंश है जिसकी उत्पत्ति पर कई महान इतिहासकारों ने शोध किए जिनमे से कुछ अंग्रेज भी थे और वे अपनी सीमित मानसिक क्षमताओं तथा भारतीय समाज के ढांचे को न समझने के कारण इस वंश की उतपत्ति पर कई तरह के विरोधाभास उतपन्न कर गए। प्रतिहार एक शुद्ध क्षत्रिय वंश है जिसने गुर्जरादेश से गुज्जरों को खदेड़ने व राज करने के कारण गुर्जरा सम्राट की भी उपाधि पाई।
मनुस्मृति में प्रतिहार,परिहार, पढ़ियार तीनों शब्दों का प्रयोग हुआ हैं। परिहार एक तरह से क्षत्रिय शब्द का पर्यायवाची है। क्षत्रिय वंश की इस शाखा के मूल पुरूष भगवान राम के भाई लक्ष्मण माने जाते हैं। लक्ष्मण का उपनाम, प्रतिहार, होने के कारण उनके वंशज प्रतिहार, कालांतर में परिहार कहलाएं। कुछ जगहों पर इन्हें अग्निवंशी बताया गया है, पर ये मूलतः सूर्यवंशी हैं। पृथ्वीराज
विजय, हरकेलि नाटक, ललित विग्रह नाटक,
हम्मीर महाकाव्य पर्व (एक) मिहिर भोज की
ग्वालियर प्रशस्ति में परिहार वंश को सूर्यवंशी
ही लिखा गया है।
लक्ष्मण के पुत्र अंगद जो कि कारापथ (राजस्थान एवं पंजाब) के शासक थे,
उन्ही के वंशज परिहार है। इस वंश की 126वीं पीढ़ी में राजा हरिश्चन्द्र प्रतिहार का उल्लेख मिलता है। इनकी दूसरी पत्नी भद्रा से चार पुत्र थे।जिन्होंने कुछ धनसंचय और एक सेना का संगठन कर अपने पूर्वजों का राज्य माडव्यपुर को जीत लिया और मंडोर राज्य का निर्माण किया, जिसका राजा रज्जिल बना।इसी का पौत्र नागभट्ट प्रतिहार था, जो अदम्य साहसी,महात्वाकांक्षी और असाधारण योद्धा था।
इस वंश में आगे चलकर कक्कुक राजा हुआ, जिसका राज्य पश्चिम भारत में सबल रूप से उभरकर सामने आया। पर इस वंश में प्रथम उल्लेखनीय राजा नागभट्ट प्रथम है, जिसका राज्यकाल 730 से 760 माना जाता है। उसने जालौर को अपनी राजधानी बनाकर एक शक्तिशाली परिहार राज्य की नींव डाली। इसी समय अरबों ने सिंध प्रांत जीत लिया और मालवा और गुर्जरात्रा राज्यों पर आक्रमण कर दिया। नागभट्ट ने इन्हे सिर्फ रोका ही नहीं, इनके हाथ से सैंनधन,सुराष्ट्र, उज्जैन, मालवा भड़ौच आदि राज्यों को मुक्त करा लिया। 750 में अरबों ने पुनः संगठित होकर भारत पर हमला किया और भारत की पश्चिमी सीमा पर त्राहि-त्राहि मचा दी। लेकिन नागभट्ट कुद्ध्र होकर गया और तीन हजार से ऊपर डाकुओं को मौत के घाट उतार दिया जिससे देश ने राहत की सांस ली।
इसके बाद इसका पौत्र वत्सराज (775 से 800) उल्लेखनीय है, जिसने परिहार साम्राज्य का विस्तार किया। उज्जैन के शासन भण्डि को पराजित कर उसे परिहार साम्राज्य की राजधानी बनाया।उस समय भारत में तीन महाशक्तियां अस्तित्व में थी। परिहार साम्राज्य-उज्जैन राजा वत्सराज, 2 पाल साम्राज्य-गौड़ बंगाल राजा धर्मपाल, 3
राष्ट्रकूट साम्राज्य-दक्षिण भारत राजा
धु्रव । अंततः वत्सराज ने पाल धर्मपाल पर आक्रमण कर दिया और भयानक युद्ध में उसे पराजित कर अपनी अधीनता स्वीकार करने को विवश किया। लेकिन ई. 800 में धु्रव और धर्मपाल की संयुक्त सेना ने वत्सराज को पराजित कर दिया और उज्जैन एवं उसकी उपराजधानी कन्नौज पर पालों का अधिकार हो गया।
लेकिन उसके पुत्र नागभट्ट द्वितीय ने उज्जैन को फिर बसाया। उसने कन्नौज पर आक्रमण उसे पालों से छीन लिया और कन्नौज को अपनी प्रमुख राजधानी बनाया। उसने 820 से 825-826 तक दस भयावाह युद्ध किए और संपूर्ण उत्तरी भारत पर अधिकार कर लिया। इसने यवनों, तुर्कों को भारत में पैर नहीं जमाने दिया। नागभट्ट का समय उत्तम
शासन के लिए प्रसिद्ध है। इसने 120 जलाशयों का निर्माण कराया-लंबी सड़के बनवाई। अजमेर का सरोवर उसी की कृति है, जो आज पुष्कर तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। यहां तक कि पूर्व काल में राजपूत योद्धा पुष्पक सरोवर पर वीर पूजा के रूप में नाहड़राव नागभट्ट की पूजा कर युद्ध के लिए प्रस्थान करते थे।
उसकी उपाधि ‘‘परम भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर थी। नागभट्ट के पुत्र रामभद्र ने साम्राज्य सुरक्षित रखा। इनके पश्चात् इनका पुत्र इतिहास प्रसिद्ध मिहिर भोज साम्राट बना, जिसका शासनकाल 836 से 885 माना जाता है। सिंहासन पर बैठते ही भोज ने सर्वप्रथम कन्नौज राज्य की व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त किया, प्रजा पर अत्याचार करने वाले सामंतों और रिश्वत खाने वाले कामचोर कर्मचारियों को कठोर रूप से दण्डित किया। व्यापार और कृषि कार्य को इतनी सुविधाएं प्रदान की गई कि सारा साम्राज्य धनधान्य से लहलहा उठा। भोज ने प्रतिहार साम्राज्य को धन, वैभव से
चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया। अपने उत्कर्ष काल में उसे सम्राट मिहिर भोज की उपाधि मिली थी।
अनेक काव्यों एवं इतिहास में उसे सम्राट भोज, भोजराज, वाराहवतार, परम भट्टारक, महाराजाधिराज आदि विशेषणों से वर्णित किया गया है।
इतने विशाल और विस्तृत साम्राज्य का प्रबंध
अकेले सुदूर कन्नौज से कठिन हो रहा था। अस्तु भोज ने साम्राज्य को चार भागो में बांटकर चार उप राजधानियां बनाई। कन्नौज- मुख्य राजधानी, उज्जैन और मंडोर को उप राजधानियां तथा ग्वालियर को सह
राजधानी बनाया। प्रतिहारों का नागभट्ट
के समय से ही एक राज्यकुल संघ था, जिसमें कई राजपूत राजें शामिल थे। पर मिहिर भोज के समय बुंदेलखण्ड और कांलिजर मण्डल पर चंदलों ने अधिकार जमा रखा था। भोज का प्रस्ताव था कि चंदेल भी राज्य संघ के सदस्य बने, जिससे सम्पूर्ण उत्तरी पश्चिमी भारत एक विशाल शिला के रूप में खड़ा हो जाए और यवन, तुर्क, हूण आदि शत्रुओं को भारत प्रवेश से पूरी तरह रोका जा सके। पर चंदेल इसके लिए तैयार नहीं हुए। अंततः मिहिर भोज ने कालिंजर पर आक्रमण कर दिया
और इस क्षेत्र के चंदेलों को हरा दिया।
मिहिर भोज परम देश भक्त था-उसने प्रण किया था कि उसके जीते जी कोई विदेशी शत्रु भारत भूमि को अपावन न कर पायेगा। इसके लिए उसने सबसे पहले आक्रमण कर उन राजाओं को ठीक किया जो कायरतावश यवनों को अपने राज्य में शरण लेने देते थे। इस प्रकार राजपूताना से कन्नौज तक एक शक्तिशाली राज्य के निर्माण का श्रेय
मिहिर भोज को जाता है। मिहिर भोज के
शासन काल में कन्नौज साम्राज्य की सीमा
रमाशंकर त्रिपाठी की पुस्तक हिस्ट्री ऑफ
कन्नौज, पेज 246 में, उत्तर पश्चिम् में सतलज नदी तक, उत्तर में हिमालय की तराई, पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण पूर्व में बुंदेलखण्ड और वत्स राज्य तक, दक्षिण पश्चिम में सौराष्ट्र और राजपूतानें के अधिक भाग तक विस्तृत थी। सुलेमान तवारीखे अरब में लिखा है, कि मिहिर भोज अरब लोगों का सभी अन्य राजाओं की अपेक्षा अधिक घोर शत्रु है।
सुलेमान आगे यह भी लिखता है कि हिन्दोस्ता
की सुगठित और विशालतम सेना भोज की थी-
इसमें हजारों हाथी, हजारों घोड़े और हजारों
रथ थे। भोज के राज्य में सोना और चांदी सड़कों पर विखरा था-किन्तु चोरी-डकैती का भय किसी को नहीं था। भोज का तृतीय अभियान पाल राजाओ के विरूद्ध हुआ। इस समय बंगाल में पाल वंश का शासक देवपाल था। वह वीर और यशस्वी था- उसने अचानक कालिंजर पर आक्रमण कर दिया और कालिंजर में तैनात भोज की सेना को परास्त कर किले पर कब्जा कर लिया। भोज ने खबर पाते ही देवपाल को सबक सिखाने का निश्चय किया। कन्नौज और ग्वालियर दोनों सेनाओं को इकट्ठा होने का आदेश दिया और चैत्र मास सन् 850 ई. में देवपाल पर आक्रमण कर दिया। इससे देवपाल की सेना न केवल पराजित होकर बुरी तरह भागी, बल्कि वह मारा भी गया। मिहिर भोज ने बिहार समेत सारा क्षेत्र कन्नौज में मिला लिया। भोज को पूर्व में उलझा देख पश्चिम भारत में पुनः उपद्रव और षड्यंत्र शुरू हो
गये।
इस अव्यवस्था का लाभ अरब डकैतों ने
उठाया और वे सिंध पार पंजाब तक लूट पाट करने लगे। भोज ने अब इस ओर प्रयाण किया। उसने सबसे पहले पंजाब के उत्तरी भाग पर राज कर रहे थक्कियक को पराजित किया, उसका राज्य और 2000 घोड़े छीन लिए। इसके बाद गूजरावाला के विश्वासघाती सुल्तान अलखान को बंदी बनाया- उसके संरक्षण में पल रहे 3000 तुर्की और हूण डाकुओं को बंदी बनाकर खूंखार और हत्या के लिए अपराधी पाये गए पिशाचों को मृत्यु दण्ड दे दिया। तदनन्तर टक्क देश के शंकर
वर्मा को हराकर सम्पूर्ण पश्चिमी भारत को
कन्नौज साम्राज्य का अंग बना लिया। चतुर्थ
अभियान में भोज ने परिहार राज्य के मूल राज्य मण्डोर की ओर ध्यान दिया। त्रर्वाण,बल्ल और माण्ड के राजाओं के सम्मिलित ससैन्य बल ने मण्डोर पर आक्रमण कर दिया। मण्डोर का राजा बाउक पराजित ही होने वाला था कि भोज ससैन्य सहायता के लिए पहुंच गया। उसने तीनों राजाओं को बंदी बना लिया और उनका राज्य कन्नौज में मिला लिया। इसी अभियान में उसने गुर्जरात्रा, लाट, पर्वत आदि राज्यों को भी समाप्त कर साम्राज्य का अंग बना लिया।
---प्रतिहार वंश की वर्तमान स्थिति---
भले ही यह विशाल प्रतिहार राजपूत
साम्राज्य 15 वीं शताब्दी के बाद में छोटे छोटे राज्यों में सिमट कर बिखर हो गया हो लेकिन
इस वंश के वंशज राजपूत आज भी इसी साम्राज्य की परिधि में मिलते हैँ।
आजादी के पहले भारत मे प्रतिहार राजपूतों के कई राज्य थे। जहां आज भी ये अच्छी संख्या में है।
मण्डौर, राजस्थान
जालौर, राजस्थान
माउंट आबू, राजस्थान
पाली, राजस्थान
बेलासर, राजस्थान
कन्नौज, उतर प्रदेश
हमीरपुर उत्तर प्रदेश
प्रतापगढ, उत्तर प्रदेश
झगरपुर, उत्तर प्रदेश
उरई, उत्तर प्रदेश
उन्नाव, उतर प्रदेश
उज्जैन, मध्य प्रदेश
चंदेरी, मध्य प्रदेश
जिगनी, मध्य प्रदेश
अलीपुरा, मध्य प्रदेश
नागौद, मध्य प्रदेश
दमोह, मध्य प्रदेश
सिंगोरगढ़, मध्य प्रदेश
एकलबारा, गुजरात
मियागाम, गुजरात
कर्जन, गुजरात
काठियावाड़, गुजरात
दुधरेज, गुजरात
खैतून, हिमाचल प्रदेश
कुमहारसेन, हिमाचल प्रदेश
प्रतिहारों की एक शाखा राघवो का राज्य
वर्तमान में उत्तर राजस्थान के अलवर, सीकर, दौसा में था जिन्हें कछवाहों ने हराया। आज भी इस क्षेत्र में राघवो की खडाड शाखा के राजपूत अच्छी संख्या में हैँ। इन्ही की एक शाखा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर, अलीगढ़,रोहिलखण्ड और दक्षिणी हरयाणा के गुडगाँव आदि क्षेत्र में बहुसंख्या में है। एक और शाखा मडाढ के नाम से उत्तर हरयाणा में मिलती है। राजस्थान के सीकर से ही राघवो की एक शाखा सिकरवार निकली है जिसका फतेहपुर सिकरी पर राज था और जो आज उत्तर प्रदेश,बिहार और मध्यप्रदेश में विशाल संख्या में मिलते हैँ। विश्व का सबसे बड़ा गाँव उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले का गहमर सिकरवार राजपूतो
का ही है। उत्तर प्रदेश में सरयूपारीण क्षेत्र में भी प्रतिहार राजपूतो की विशाल कलहंस शाखा मिलती है। इनके अलावा संपूर्ण मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तरी महाराष्ट्र आदि में जहाँ जहाँ प्रतिहार साम्राज्य फैला था अच्छी संख्या में हैँ ।। मित्रों आइए अब जानते है प्रतिहार/परिहार वंश की शाखाओं के बारे में।
भारत में परिहारों की 30 शाखा है जिसमे इन शाखाओं की भी कई उप शाखाएँ है। जिससे आज प्रतिहार/परिहार वंश पूरे भारत वर्ष में फैल गये।
== प्रतिहार क्षत्रिय वंश की शाखाएँ ==
(1) डाभी
(2) बडगुजर (राघव)
(3) मडाड और खडाड
(4) इंदा
(5) लल्लुरा / लूलावत
(6) सूरा
(7) रामेटा / रामावत
(8) बुद्धखेलिया
(9) खुखर
(10) सोधया
(11) चंद्र
(13) माहप
(14) धांधिल
(15) सिंधुका
(16) डोरणा
(17) सुवराण
(18) कलाहँस
(19) देवल
(20) खरल
(21) चौनिया
(22) झांगरा
(23) बोथा
(24) चोहिल
(25) फलू
(26) धांधिया
(27) खखढ
(28) सीधकां
(29) कमाष / जेठवा
(30) सिकरवार
ये सभी परिहार राजाओं अथवा परिहार ठाकुरों से निकलकर बनी है। आइए अब जानते है प्रतिहार वंश के महान योद्धा शासको के बारे में जिन्होंने अपनी मातृभूमि, प्रजा व राज्य के लिए सदैव ही न्यौछावर थे।
** प्रतिहार वंश के महान राजा **
(1) राजा हरिश्चंद्र प्रतिहार
(2) राजा नागभट्ट प्रतिहार
(3) राजा यशोवर्धन प्रतिहार
(4) राजा वत्सराज प्रतिहार
(5) राजा नागभट्ट द्वितीय प्रतिहार
(6) राजा मिहिर भोज प्रतिहार
(7) राजा महेन्द्रपाल प्रतिहार
(8) राजा महिपाल प्रतिहार
(9) राजा विनायकपाल प्रतिहार
(10) राजा महेन्द्रपाल द्वितीय प्रतिहार
(11) राजा विजयपाल प्रतिहार
(12) राजा राज्यपाल प्रतिहार
(13) राजा त्रिलोचनपाल प्रतिहार
(14) राजा यशपाल प्रतिहार
(15) राजा वीरराजदेव प्रतिहार (नागौद राज्य के संस्थापक )
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जय माँ चामुण्डा।।
जय क्षात्र धर्म।।
नागौद रियासत।।
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