सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार

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Samrat mihir bhoj pratihar सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार परिहार पड़िहार पढ़ीहार राजपूत राजपुताना वीर योद्धा Parihar padhihar padihar Rajput rajputana veer yoddha PNG Logo hd picture By @GSmoothali गंगासिंह मूठली

चालुक्य वंश

वातापी के चालुक्य शासक
एवँ उनका शासनकाल

जयसिंह चालुक्य -
रणराग -
पुलकेशी प्रथम (550-566 ई.)
कीर्तिवर्मा प्रथम (566-567 ई.)
मंगलेश (597-98 से 609 ई.)
पुलकेशी द्वितीय (609-10 से 642-43ई.)
विक्रमादित्य प्रथम (654-55 से 680ई.)
विनयादित्य (680 से 696 ई.)
विजयादित्य (696 से 733 ई.)
विक्रमादित्य द्वितीय (733 से 745 ई.)
कीर्तिवर्मा द्वितीय (745 से 753 ई.)
जयसिंह को चालुक्य साम्राज्य का प्रथम शासक माना जाता है। कैरा ताम्रपत्र अभिलेखीय साक्ष्य से यह प्रमाणित होता है कि जयसिंह चालुक्य राजवंश का प्रथम ऐतिहासिक शासक था।
रणराग वातापी के चालुक्य नरेश जयसिंह का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। रणराग सम्भवतः 520 ई.में वातापी के राज्यसिंहासन पर बैठा।
गदा युद्ध में कुशल होने के कारण उसने रण रागसिंह की उपाधि धारण की थी।
पुलकेशी प्रथम (550-566 ई. चालुक्य नरेश रणराग का पुत्र था। पुलकेशी प्रथम को पुलकेशिन प्रथम के नाम से भीजाना जाता था।
यह चालुक्य वंश का सबसे प्रतापी राजा था।
पुलकेशी प्रथम दक्षिण में वातापी में चालुक्य वंश का प्रवर्तक था।
दक्षिणापथ में चालुक्य साम्राज्य के राज्य की स्थापना छठी सदी के मध्यभाग में हुई जब कि गुप्त साम्राज्य का क्षय प्रारम्भ हो चुका था।
यह निश्चित है, कि 543 ई. तक पुलकेशी नामक चालुक्य राजा वातापी बीजापुर जिले में बादामी को राजधानी बनाकर अपने पृथक व स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर चुका था।
महाराज मंगलेश के महाकूट अभिलेख से प्रमाणित होता है कि उसने हिरण्यगर्भ अश्वमेध अग्निष्टोम अग्नि चयन वाजपेयबहुसुवर्ण पुण्डरीक यज्ञ करवाया था।
इसने रण विक्रम सत्याश्रय धर्म महाराज पृथ्वीवल्लभराज तथा राजसिंह आदि की उपाधियाँ धारण की थीं।
उनका प्राचीन इतिहास अन्धकार में है पर उसने वातापी के समीपवर्ती प्रदेशों को जीत कर अपनी शक्ति का विस्तार किया था और उसी उपलक्ष्य में अश्वमेध यज्ञ भी किया था। इस यज्ञ के अनुष्ठान से सूचित होता है कि वह अच्छा प्रबल और दिग्विजयी राजा था।

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