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सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार

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Samrat mihir bhoj pratihar सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार परिहार पड़िहार पढ़ीहार राजपूत राजपुताना वीर योद्धा Parihar padhihar padihar Rajput rajputana veer yoddha PNG Logo hd picture By @GSmoothali गंगासिंह मूठली

What is Rest in Peace (#RIP)

ये "रिप-रिप-रिप-रिप" क्या है? आजकल देखने में आया है कि किसी मृतात्मा के प्रति RIP लिखने का "फैशन" चल पड़ा है, ऐसा इसलिए हुआ है, क्योंकि कान्वेंटी दुष्प्रचार तथा विदेशियों की नकल के कारण हमारे युवाओं को धर्म की मूल अवधारणाएँ या तो पता ही नहीं हैं, अथवा विकृत हो चुकी हैं... RIP शब्द का अर्थ होता है "Rest in Peace" (शान्ति से आराम करो), यह शब्द उनके लिए उपयोग किया जाता है जिन्हें कब्र में दफनाया गया हो, क्योंकि ईसाई अथवा मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार जब कभी "जजमेंट डे" अथवा "क़यामत का दिन" आएगा, उस दिन कब्र में पड़े ये सभी मुर्दे पुनर्जीवित हो जाएँगे... अतः उनके लिए कहा गया है, कि उस क़यामत के दिन के इंतज़ार में "शान्ति से आराम करो" ! लेकिन हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार शरीर नश्वर है, आत्मा अमर है, हिन्दू शरीर को जला दिया जाता है, अतः उसके "Rest in Peace" का सवाल ही नहीं उठता ! हिन्दू धर्म के अनुसार मनुष्य की मृत्यु होते ही आत्मा निकलकर किसी दूसरे नए जीव/ काया/शरीर/नवजात में प्रवेश कर जाती है... उस आत्मा को अगल

"किताबी ज्ञान"

पंडित जी बुदबुदा रहे थे, - 'प्रीति बड़ी माता की और भाई का बल, ज्योति बड़ी किरणों की और गंगा का जल।' ... यह सुन वहां से गुजर रही बुजुर्ग महिला हंस पड़ी। पंडित जी को उसका हंसना अपमानजनक लगा। उन्होंने महिला के सामने एतराज जताया, तो महिला ने जबाब दिया, 'मैं आप पर नहीं, आपकी बात सुनकर हंसी थी। आप जो बुदबुदा रहे थे वह बात सत्य प्रतीत होती है, पर है नहीं। आपके जैसा ज्ञानी ऐसी बात करे, इस पर मुझे हंसी आ गई।' पंडित जी नें पूछा, 'तो फिर सत्य क्या है ? महिला ने कहा, 'प्रीति बड़ी त्रिया की और बांहों का बल। ज्योति बड़ी नयनों की और मेघों का जल। बात अगर पिता पुत्र में फंसे तो माँ पुत्र का साथ नहीं देगी, पर पत्नी हर हाल में साथ होगी। जब बेरी अकेले में घेर लेगा तो भाई का नहीं, अपनी बांहों का बल काम आएगा। ज्योति नयनों की इसलिए बड़ी है कि जब आंखें ही न हों तो सूरज की किरणों की रोशनी या अमावस का अंधेरा सब बराबर है। गंगाजी पवित्र हैं, लेकिन वे मेघों के समान न जन जन की प्यास बुझा सकती हैं, न सिंचाई कर सकती हैं।' पंडितजी बोले, 'अब मैं समझ गया, किताबी ज्ञान काफ

क्या परशुराम ने किया था धरती को क्षत्रियविहीन ?

यदि परशुराम इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रिय से खाली कर देते तो आज इतने क्षत्रिय कहा से आते। आज भी क्षत्रियों की गणना की जायें तो वे अन्य सभी जातियों से अधिक मिलेंगे क्या परशुराम ने किया था धरती को क्षत्रियविहीन ? यदि परशुरामजी के अवतार धारण करने का समय निर्धारित किया जाये तो उन्होनें भगवान राम से बहुत पहले अवतार धारण किया था। और उस समय कार्तवीर्य के अत्याचारों से प्रजा तंग आ चुकी थी। कार्तवीर्य उस समय अंग आदि 21 बस्तियों का स्वामी था परशुराम ने अवतार धारण करके कार्तवीर्य को मार दिया और इस संघ को जीतकर कश्यप ऋषि को दान में दे दिया। यह अवतारी कार्य पूरा करने के तुरंत बाद ही वे देवलोक सिधार गये। परशुराम के देवलोक चले जाने के बाद उसके अनुयायियों ने एक परम्परा पीठ स्थापित कर ली जिसके अध्यक्ष को परशुराम जी कहा जाने लगा। यह पीठ रामायण काल से महाभारत काल तक चलती रही। इसलिय़े मूल परशूराम नही बल्कि परशूराम पीठ के अध्यक्ष सीतास्वंयंवर के अवसर पर आये थे। नहीं तो विष्णु के दो अवतार इक्ट्ठे कैसे होते क्योंक परशूरामजी को यह पता नही था कि राम का अवतार हो गया है या नही। किंतु जब राम की पर भृगु चिन्ह