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सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार

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Samrat mihir bhoj pratihar सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार परिहार पड़िहार पढ़ीहार राजपूत राजपुताना वीर योद्धा Parihar padhihar padihar Rajput rajputana veer yoddha PNG Logo hd picture By @GSmoothali गंगासिंह मूठली

क्षत्रिय/राजपूतों के लिए ध्यान में रखने योग्य कुछ बातें::-

१- अपने पूर्वजों का सम्मान करें तथा अपने बच्चों को पूर्वजों की कथाओं/गुणों से परिचित कराएँ. २- अपने-अपने घरों में महाभारत,गीता,रामायण एवं महापुरुषों से सम्बंधित गाथाएं आदि ग्रंथों को अवश्य रखें तथा बच्चों को कभी-कभी उसका पाठ करने के लिए प्रेरित करें तथा उसे आप भी सुनें. क्षत्रिय महापुरुषों का चित्र भी अपने घरों के दीवालों पर लगायें. ३- अपने बच्चों का नामकरण भी पूर्वजों के नाम के अनुरूप रखें तथा नाम के साथ अपनी क्षत्रियता की पहचान के लिए कुलों की उपाधियों को रखना न भूलें, क्योंकि यथानाम तथागुण चरितार्थ होती है. बच्चों में इससे क्षत्रियोचित गुणों का विकास होता है. ४- नाम भी ऐसा रखें जिससे बच्चे अपने आपको गौरवान्वित महसूस करें. नैतिक शिक्षा एवं अनुशासन का भी पाठ पढ़ायें तथा अपने बच्चों को आज्ञाकारी बनायें. ५-अपने वचन का पालन करें. आदर्श आचरण स्थापित करें तथा अच्छे आचरण के लिए बच्चों के साथ-साथ दूसरों को भी प्रेरित करें. ६- बच्चों को मर्यादा का उल्लंघन नहीं करने की शिक्षा दें तथा बड़ों का आदर करना सिखाएं. ७. बच्चों को पढने के साथ-साथ खेलने की भी पूरी आज़ादी दें तथा शारीरिक गठन के लिए व

चालुक्य वंश

वातापी के चालुक्य शासक एवँ उनका शासनकाल जयसिंह चालुक्य - रणराग - पुलकेशी प्रथम (550-566 ई.) कीर्तिवर्मा प्रथम (566-567 ई.) मंगलेश (597-98 से 609 ई.) पुलकेशी द्वितीय (609-10 से 642-43ई.) विक्रमादित्य प्रथम (654-55 से 680ई.) विनयादित्य (680 से 696 ई.) विजयादित्य (696 से 733 ई.) विक्रमादित्य द्वितीय (733 से 745 ई.) कीर्तिवर्मा द्वितीय (745 से 753 ई.) जयसिंह को चालुक्य साम्राज्य का प्रथम शासक माना जाता है। कैरा ताम्रपत्र अभिलेखीय साक्ष्य से यह प्रमाणित होता है कि जयसिंह चालुक्य राजवंश का प्रथम ऐतिहासिक शासक था। रणराग वातापी के चालुक्य नरेश जयसिंह का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। रणराग सम्भवतः 520 ई.में वातापी के राज्यसिंहासन पर बैठा। गदा युद्ध में कुशल होने के कारण उसने रण रागसिंह की उपाधि धारण की थी। पुलकेशी प्रथम (550-566 ई. चालुक्य नरेश रणराग का पुत्र था। पुलकेशी प्रथम को पुलकेशिन प्रथम के नाम से भीजाना जाता था। यह चालुक्य वंश का सबसे प्रतापी राजा था। पुलकेशी प्रथम दक्षिण में वातापी में चालुक्य वंश का प्रवर्तक था। दक्षिणापथ में चालुक्य साम्राज्य के राज्य की स्थापना छठी स

चालुक्य वंश

वातापी के चालुक्य शासक एवँ उनका शासनकाल जयसिंह चालुक्य - रणराग - पुलकेशी प्रथम (550-566 ई.) कीर्तिवर्मा प्रथम (566-567 ई.) मंगलेश (597-98 से 609 ई.) पुलकेशी द्वितीय (609-10 से 642-43ई.) विक्रमादित्य प्रथम (654-55 से 680ई.) विनयादित्य (680 से 696 ई.) विजयादित्य (696 से 733 ई.) विक्रमादित्य द्वितीय (733 से 745 ई.) कीर्तिवर्मा द्वितीय (745 से 753 ई.) जयसिंह को चालुक्य साम्राज्य का प्रथम शासक माना जाता है। कैरा ताम्रपत्र अभिलेखीय साक्ष्य से यह प्रमाणित होता है कि जयसिंह चालुक्य राजवंश का प्रथम ऐतिहासिक शासक था। रणराग वातापी के चालुक्य नरेश जयसिंह का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। रणराग सम्भवतः 520 ई.में वातापी के राज्यसिंहासन पर बैठा। गदा युद्ध में कुशल होने के कारण उसने रण रागसिंह की उपाधि धारण की थी। पुलकेशी प्रथम (550-566 ई. चालुक्य नरेश रणराग का पुत्र था। पुलकेशी प्रथम को पुलकेशिन प्रथम के नाम से भीजाना जाता था। यह चालुक्य वंश का सबसे प्रतापी राजा था। पुलकेशी प्रथम दक्षिण में वातापी में चालुक्य वंश का प्रवर्तक था। दक्षिणापथ में चालुक्य साम्राज्य के राज्य की स्थापना छठी स

मेवाड़ राजवंश का संक्षिप्त इतिहास

   वीर प्रसूता मेवाड की धरती राजपूती प्रतिष्ठा, मर्यादा एवं गौरव का प्रतीक तथा सम्बल है। राजस्थान के दक्षिणी पूर्वी अंचल का यह राज्य अधिकांशतः अरावली की अभेद्य पर्वत श्रृंखला से परिवेष्टिता है। उपत्यकाओं के परकोटे सामरिक दृष्टिकोण के अत्यन्त उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है। मेवाड अपनी समृद्धि, परम्परा, अधभूत शौर्य एवं अनूठी कलात्मक अनुदानों के कारण संसार के परिदृश्य में देदीप्यमान है। स्वाधिनता एवं भारतीय संस्कृति की अभिरक्षा के लिए इस वंश ने जो अनुपम त्याग और अपूर्व बलिदान दिये सदा स्मरण किये जाते रहेंगे। मेवाड की वीर प्रसूता धरती में रावल बप्पा, महाराणा सांगा, महाराण प्रताप जैसे सूरवीर, यशस्वी, कर्मठ, राष्ट्रभक्त व स्वतंत्रता प्रेमी विभूतियों ने जन्म लेकर न केवल मेवाड वरन संपूर्ण भारत को गौरान्वित किया है। स्वतन्त्रता की अखल जगाने वाले प्रताप आज भी जन-जन के हृदय में बसे हुये, सभी स्वाभिमानियों के प्रेरक बने हुए है।मेवाड का गुहिल वंश संसार के प्राचीनतम राज वंशों में माना जाता है।मान्यता है कि सिसोदिया क्षत्रिय भगवान राम के कनिष्ठ पुत्र लव के वंशज हैं। श्री गौरीशंकर ओझा की पुस्तक "मेवाड़