सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार

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Samrat mihir bhoj pratihar सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार परिहार पड़िहार पढ़ीहार राजपूत राजपुताना वीर योद्धा Parihar padhihar padihar Rajput rajputana veer yoddha PNG Logo hd picture By @GSmoothali गंगासिंह मूठली

दिवराला सतीमाता

उसदिन सुबह फिर से माल सिह जी की तबीयत खराब हुई तो उनको सीकर डा. मगन सिह जी को दिखाने ले गयेथे। लेकिन पहुचने से पहले
ही काकोसा के सर मे भयन्कर दर्द हुआ । सायद Brainhamrage
हुआ था।  सीकर मे डाक्टर साब ने देखा .... जाच के बाद... उन्है मर्त घोसित कर दिया गया।  गाव के अधिकान्स लोग साथ मे थे , जिन्होने अध्यापक  पिता सुमेर सिह जी व छोटे भाईयो को कैसे जैसे साहस दिलाया व  गाव के लिये रवाना हुये,
उनके वापस दिवराला पहुचने से पहले ही खबर आग की  तरह फैल गयी। पूरे गाव मे मातम सा फैलगया था। जिसको देखो  एक चरचा थी,,, अनर्थ हो गया... एक साल भी सादी को नही हूआ था,, कोई कहता कितना सज्जन और होनहार लडका था ,तो महिलाये कहती कैसा राम जी सीताजी की सी जोडी ही,,  और थी भी
चारोतरफ रूदन और मातम सा छागया था। गाव ने एक 24 साल का
b.sc. पास होन हार खो दिया था

दिवराला सतीमाता... ...
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    ४ सितम्बर १९९७ उस समय मै बहुत छोटासा था। यही कोई ६साल का होगा ...स्कूल जाना सुरू ही किया था,उस दिन हम स्कूल मे लेट होगये थे। (अक्सर जब फार्म से पैदल आते जो ३ km  दूर है गावसे तो लेट होजाते थे। इसलिये गाव वाले घर (हेली)
पर खेलरहे थे।यही नियम बनारखा था बडे भाई साब और जीजा होरोने। जिससे स्कूल का टाइम होनेपर जब पापा ट्रेक्टर से लेने आते तो सभी एकजगह मिलजाते।
  उस दिन छुट्टी करने की वजह से हमे सारी घटना की जानकारी जल्दी मिलगई, मेरे लिये यह अजीबसा था ,सायद जीवन का पहला अनुभव होगा। सब तरफ गाव मे मायूशी कासा माहोल.. सब के बीच एक ही बात... बोहोत बुरा हो गया।२।
हमने भी खेलना बन्द किया और उनकी बाते सुननेलगे। इसी दोरान पता चला... लास को लेकर आगये। देखते ही देखते ह्रदयविदारक द्रश्य होगया,, चारोतरफ रूदन ही रूदन..... जैसे ही इस अनहोनी का पता काकीसा...रूपकवर जी को लगा.. वे फत्तर की भाति स्तब्ध रहमयी ,मानो वो भी निष्प्राण होगयी हो।  कुछ समझदार औरतै उनको उनके कमरे मे   लेगयी। काफी देर बाद जब होश आया तो वै निशब्द ही रही ।ना रोये ना बोले,,, कुछ समय बाद जब उनको बाहर बुलाया गया,, तो उन्होने मना करते हुये कहा.. " मासा मै सती होस्यू।" बुजुर्ग औरतो ने उनकी बात को भाव- आवेस समझा,,,,
फिर उन्होने आग्रह पूर्वक कहा... तो उनको समझाने का प्रयाश किया गया। यह बात बाहर पुरूषो तक पहुची। बडे बुजुर्गो ने कहा कि... यह बाते आज के जमाने मे कैसे सम्भव है? सरकार भी इसकी अनुमती नही देती। पूरे गाव को जैल तो
होगी ही नौकरीया
जायेगी सो अलग...। (उनके परीवार के अधीकान्श सदस्य सरकारी सेवामे कार्यरत थे सा) इस वजह से सभी ने समझाने का प्रयास किया।
   किन्तु उनके सतीत्व की शक्ती के सामने किसी की एक नही चली।
उनका आग्रह अब द्रढ सन्कल्प मे बदल चुका था।शब्दो मे एक अलोकिक शक्ती का सन्चार हो रहा था। उन्होने आदेशात्मक शब्दो मे कहा " बाईसा पानी का कलश रखवाऔ .... और अपने कमरे मे जाकर स्नान किया पूरे श्रणगार किये और शादी की पोषाक मे दुल्हन की तरह सज गये।
  गाव के बुजुर्गौ ने विचार विमर्श कर विद्वान पण्डितो को बुलागया। उनहोने अपने पन्चाग देखे प्रश्न कुण्डली बनाकर कहा कि इनके प्रबल योग है जिसको कोई
भी नही रोक पायेगा। और अगर हमने बल पूर्वक रोकने का प्रयाश भी किया तो बाला सतीमाता जी या सइवाड त्रिवेणी वाले सतीजी की तरह जीवन बितायेगे। इसलिये इस पुनीत कार्य मे सहयोग करने मे ही भलाई है।
  देखते ही देखते सभी गाव वालो की एक राय बन गयी सब की सहमती से इस  देवीय कार्य मे सहयोग करने का नीर्णय लीया गया।
    अब गाव मे फिरसे एक खबर बिजली की गती से फैली... सतीजी ....
हो ...रहे.... है....!!
क्या बच्चे ,क्या बडे,क्या नवयूवक , क्या महिलाये दोड पडे। स्कूलो की छुट्टी करदी गयी। सभी अपना-अपना काम छोड कर सीता रामजी के मन्दिर के पास इकट्ठे होने लगे। गाव के छत्तीसो कौन अपने अपने वर्णधर्मानुसार अपने कार्यसम्पादन मे लग गये। एक अद्वितीय सामाजिकता का परीचय दीया था सभी ने, मानो सभी इस पुनीत देव कार्य मे अपना पूर्ण योगदान देने को तत्पर हो।
   हम सारे भाई बहन भी दौड कर पहुचे.... हमारे पहुचने तक सीतारामजी के मन्दिर से यात्रा रवाना हो चुकी थी।
आगे-आगे म्हाल सिह जी की अर्थि चल रही थी,चारोतरफ जलती हुइ मसाले और चार जने नन्गी तलवरे ( तलवर से बुरी शक्तीया पास नही आती सा) लेकर चलरहे थे। साथ -साथ खुद रूपकवर सतीजी  शादी के लाल पोशाक मे दुर्गामाता से देद्विप्यमान होरहे थे।लोगो ने पहले ओम कवर सतीमाता का जयकारा लगाया.... उनके देवर ने बताया रूपकवर नाम है सा.. फिर रूप कवर सतीमाता ... की...
जय कारे गून्जने लगे। सव यात्रा देव मे बदल गयी ,सौक उल्लास मे बदल गया। एसी यात्रा ना पहले कभी दखी थी और ना ही जीवन मे पुन: देख पाया।
यात्रा मीठे( मीठा गाव के निकट जहापर पूर्व मे जो दिवराला मे सतीजी हुये है उनका स्थान भी है) की तरफ मुडी...

.......यात्रा 'मीठे' मे पहुचने के बाद पहले से तैयार की हूई चिता का वैद मन्त्रो से सुद्धीकरण कर पुरोहीत जी ने वैदी पर जल घ्रतादि प्रशीचन किया।
सती जी ने म्हाल सिह जी के सर को अपनी गौद मे लेकर चिता पर विराजमान होगये,और अपने हाथ मे अग्गरबत्ती लेकर  अपने तरीके से कुछ समय ईसा वन्दना करते रहे।
उस समय भीड के धक्के से मे पिछड गया था। मेरे बडे भाईसाब वही थे उन्होने देखा था कि... थोडी देर बाद चिता मे स्वत: अग्नि प्रज्वलित होगयी थी।  आग की लपटे तेज होने लगी।  लोगो के पीछे से देखने मे  दिक्त हुइ तो मे छोटेहोने का फायदा उठाते हुये लोगो के पैरो मे से निकलता हुआ चिताके आगे तक पहुचा। वहा जाकर मेने जो द्रश्य देखा था वह आज भी यथावत याद है। उनके सरपर चुनरी यथावत थी वे उस समय तक बिराजे हुये  थे, माल सिह जी का सरीर अधिकान्स जल चुका था। किन्तु रूपकवर सती माता चिता पर इस तरह बिराजे थे मानो अग्नि मे स्वयम प्रवेश कर रहे हो । उस अग्नि का ताप भी उनके सतीत्व के तप के सामने फीका पडगया होगा। देखते ही देखते वह ईश्वरीय शक्ती ईश्वर मे विलीन हो गयी।         इति
शक्ती स्वरूपा मा रूपकवर सतीमाता को सत् सत् नमन॥

साभार:-
रघुकुल प्रताप सिह दिवराला

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