राजपूताने में यह जनश्रुति है कि एक दिन बादशाह ने बीकानेर के राजा रायमसिंह के छोटे भाई पृथ्वीराज से, जो एक अच्छा कवि था, कहा कि राणा प्रताप अब हमें बादशाह कहने लग गए है औरहमारी अधीनता स्वीकार करने पर उतारू हो गए हैं। इसी पर उसने निवेदन किया कि यह खबर झूठी है। बादशाह ने कहा कि तुम सही खबर मंगलवाकर बताओ। तब पृथ्वीराज ने नीचे लिखे हुए दो दोहे बनाकर महाराणा प्रताप के पास भेजे- पातल जो पतसाह, बोलै मुख हूंतां बयण।हिमर पछम दिस मांह, ऊगे राव उत॥पटकूं मूंछां पाण, के पटकूं निज जन करद।दीजे लिख दीवाण, इण दो महली बात इक॥. . आशय : महाराणा प्रतापसिंह यदि अकबर को अपने मुख से बादशाह कहें तो कश्यप का पुत्र (सूर्य) पश्चिम में उग जावे अर्थात जैसे सूर्य का पश्चिम में उदय होना सर्वथा असंभव है वैसे ही आप के मुख से बादशाह शब्द का निकलना भी असंभव है। हे दीवाण (महाराणा) मैं अपनी मूंछों पर ताव दूं अथवा अपनी तलवार का अपने ही शरीर पर प्रहार करूं, इन दो में से एक बात लिख दीजिये। . . इन दोहों का उत्तर महाराणा ने इस प्रकार दिया-तुरक कहासी मुख पतौ, इण तन सूं इकलिंग।ऊगै जांही ऊगसी, प्राचीबीच पतंग॥खुसी हूंत पीथल कम